मां, मांयड़भोम अर मायड़भासा
रो दरजो सुरग सूं ई ऊंचो
21 फरवरी, 1952 रै दिन बांगला भासा रो मान बचावण सारू ढाका में नौ जणां आपरो बलिदान दियो। इतिहास में प्रेम सारू, देस सारू बलिदान हुवण री बातां तो घणी सुणी पण भासा-प्रेम सारू आ निराळी घटना ही। इण घटना री याद में हर बरस 21 फरवरी नै आखै संसार रा मायड़भासा-हेताळु, खासतौर सूं बांगला-भासी इण दिन नै भासा-शहीद-दिवस रै रूप में मनावै। यूनेस्को इण दिन नै अंतरराष्ट्रीय मायड़भासा दिवस घोषित कर राख्यो है। इण मौकै आपां राजस्थानी रा लूंठा लिखारा पद्मश्री विजयदांन देथा रा सब्द
-पद्मश्री विजयदांन देथा
भासा कोई थोथो नारो नईं है। सरीर रो हिस्सौ व्है मायड़भासा। भासा खतम व्है तो लाखां सालां री सांस्क्रतिक परम्परा खतम व्है। आपरै सांस्कृतिक वातावरण मांय पनप'र जको सबद निकळै उण री कोई होड़ नीं व्है। भासा शास्त्री भासा नईं बणावै। भासा सिरजै है- औरत वर्ग, खेत-खळां अर दूजी ठोड़ पचण वाळा, पसीनो बहावण वाळा मजूर-किरसाण।अठारवी सताब्दी में रूस में जका अभिजातीय वर्ग हा, वै फ्रेच बोलता और बाकी गरीब तबको रूसी। पण कोई भी रूस रो, जर्मनी रो, जापान रो मातृभाषा बिना आगै नीं बध सक्यो। किणी देस रो लिखारो व्हो, आपरी मायड़भासा बिना कोई रवीन्द्र बाबू, बंकिम या झंवेर चंद मेघाणी नीं बण सकै। कोई भी क्लासिकल साहित्य मायड़भासा टाळ नीं रचीजै। अठै रो आकास, अठै री जमीन, अठै रो पांणी सगळो मातभासा रै पांण ई अभिव्यक्त व्है। नौकरी लागण वास्तै तो भलां ई दस भासावां सीख लो, पण रचनात्मक साहित्य री सिरजणा तो मायड़भासा में व्है ई सकै। छव बरस री उमर में टाबर कनै आपरी मायड़भासा री जित्ती सबदावळी व्है जावै, वा दूजी भासा में बीए करै जद तक नीं व्है सकै। आपणा कित्ता-कित्ता सबद है, लोकगीत है, मुहावरा है, औखांणा है, बातचीत रा कित्ता लफ्ज है। ब्रजमोहन जावलिया आपरी लोकजीवन सबदावली में जिका सबदां रो संकलन करियो है, वो घणो अनोखो काम है। आप बांचो। एक-एक प्रक्रिया रा आपरा न्यारा-न्यारा सबद है।लोकगीत आपणै राजस्थान में करीब-करीब सब समान है। बोली में थोड़ो-घणो फरक है। डिंगळ, जो राजस्थानी रो ई प्राचीन रूप है, एक हजार साल तक अठै काव्य रो माध्यम रैयी। म्हैं जद पढणो-लिखणो सरू करियो जद सूं लेयनै एमए करी जित्तै राजस्थानी री किताबां कोनी मिळती। पण म्हारै अवचेतन में राजस्थानी रा दाणा हा। वां सूं लिखणो पोळायो। 1958 में संकळप लीन्यो कै राजस्थानी टाळ किणी दूजी भासा में कागद ई नीं लिखूंला।
राजनीतिक इच्छाशक्ति बिना कोई भासा नै मान्यता नीं मिळ्या करै। आपणै देखतां-देखतां बोडो, संथाली, डोगरी, नेपाली, कोंकणी, मैथिली अर पतो नीं कित्ती भासावां नै मान्यता मिळगी। वां रै नेतावां में दम हो। आपणा नेता वोट री वगत तो भासण मायड़भासा में करै, पण मायड़भासा रै मान-सनमान री बात नीं जाणै। वै नीं जाणै कै मायड़भासा सूं वंचित रैवणो, कित्ती बड़ी सम्पदा सूं वंचित रैवणो है।आज भण्या-गुण्यां मोट्यारां रो फरज बणै कै वै जनता नै इण मुद्दे सारू जागरूक करै। आजादी वास्तै सगळो देस नीं लड़्यो। गिण्या-चुण्या मिनख व्है जो आंदोलन में आगीवाण व्हिया करै। आज हरभांत रो भेद मेट'र मायड़भासा रै सनमान सारू एकठ व्हैण री जरूरत है, क्यूंकै आपणी संस्क्रति में मां, मांयड़भोम अर मायड़भासा रो दरजो सुरग सूं ई ऊंचो है।
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रुत आई रे पपईया तेरै बोलण की
-रामदास बरवाळी
फागण रै रंग में अंग-अंग रमै। मैहरी करै मस्ती रो सिणगार। घाघरियो-कु़डतियो, ओढणियो। मूंछां लकोवण खातर काढै घूंघटो। बांधै पेटी। पगां मांय बंधावै मोटा-मोटा घूघरिया। दिखावै घूम-घूमाळो नाच। उठै डंफां रा धमीड़ा। गावै धमाळ।
रुत आई रे पपईया तेरै बोलण की।
रुत आई रे......।
कठै रवै रे तेरा मोर-पपईया रे,
कठै रवै रे प्यारी कोयलड़ी ?
रुत आई रे......।
बागां में रवै रे मेरा मोर पपईया,
म्हैलां में रवै रे प्यारी कोयलड़ी।
भाई संतोष जी,
ReplyDeleteमायड़भोम सारू आपरो हेत देख'र हरख हुयो. राबड़ी म्हारै अठै जोरदार बनै है सा. हनुमानगढ़ जिला रो परलीका गाँव है म्हारो. हरियाणा री सींव लागे है म्हारै.
हरियाणा रा लोग राबड़ी नै राजस्थानी बियर रै नाम सूँ जानै है. पधारो सा. मुंबई में आप काईं कर रेया हो? पूरा समाचार लिखज्यो सा. इण ब्लॉग रो ठिकानो दूजा प्रवासी भाई-भैना ने भी बताओ सा.
-सत्यनारायण सोनी- 09602412124
i like your love belong to village (sandwa), great men , keep it up.......
ReplyDeleteregards,
sitaram suthar
anand, gujarat