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Thursday, January 14, 2010

नाजक

रामरखो बरस पिचेतर खायां बैठ्यो है, पण बणी कोनी कदी पड़ोसियां सागै ई। पड़ोसी तो दूर, बीं री तो कदी घरवाळां सागै ई ठीकरी में घाली ई को रळी नीं। घरवाळी तो उणनै चाळीस रै घर मांय ई छोड़'र रामजी नै प्यारी होयगी ही। आ उमर धोबी रो कुत्तो हुवै। घर रो रैवै नीं, घाट रो। टाबरिया ऊपरनै आयग्या हा। टाबरियां नैं ब्या`वै कै खुद रचावै। अर फेर, ईं हाणी में कठै पड़्यो हो परथावो!
ऊमर रा दिन गुजरता रैया। वगत टिप्यां डील रो सत ई जावण लाग्यो। रामरखो बात-बात पर सुणावण लाग्यो-
''
केस-सरोवण-लोयणां, गोडां अर दांतां।
इतणां में बीखो पड़ै, जोबनियो जांतां।।''
बात साची ई ही। वगत रै साथै-साथै रामरखै रो डोळ ई बदळग्यो। पण डोळ बदळ्यां मिजाज कद बदळै। अबार तो घर में सरमण जिस्यो सपूत च्यानण है, सीता-सी सुपातर बीनणी है। सेवाभावी पोता-पोती है। पण डोकरै नै कदे साग में तंत को लागै नीं, तो कदे रोटियां में किरकर लागै। इस्यै सुरग जिस्यै घर नै ई बो नरग अर कीड़ां री कुंड बतावै। घर रो हरेक जीव बीं नै खोट रो डूजो लागै अर बो तरणबंट हुय'र घणी बारी न्यारो चूल्हो तकात मांड लेवै। बास-गळी रा लोग बतळावै, ''बड़ो लछगारो है भई!''
रामरखै रै हेत-प्यार नांव री कोई चीज लोवै-लवास कर ई को निसरी नीं। बास में घणो ई सम्पत है, पण बीं नै सगळो बास औगणगारो लागै। सा'मलो पड़ोसी भुगानो तो बीं री आंख मांय कांकरो-सो रड़कै।
भुगानै आपरै बारणै आगै बैठण नै छोटो-सो चूंतरियो बणायो तो बण बीं सूं दूणो बणा लियो। आं दिनां घरां में टूंटियां लागण सूं पाणी रो ई तोड़ो को रैयो नीं। भुगानै रै घर सूं दो बालटी पाणी बारै आवै तो रामरखो च्यार ढोळै। अब कीं रा ई भैत तिसळो अर भलां ई कोई आप। आं रै बाप रो कांईं लागै।
बहानो मिल्यो नीं अर राड़ बधी नीं। और कोई नां मिलै तो च्यानणियै रै ई बांथां पड़ जावै। च्यानण घणो ई टाळै, पण किसो टळ जावै। रणसिंगो बाजै तो बाज ई बो करै। गाळां तो इसी चेपै कै कानां रा कीड़ा ई झड़बो करै।
आंठीलो ई पूरो। खतौड़ रै काम सूं बिसांई लेवणी हुवै तो बारै चूंतरी पर छोटी-सी कुरसी ढाळ' बैठै। कुरसी कांईं, कुरसी रो बचियो ई मानो। अर बीं कुरसी पर बो बैठै जद टांग पर टांग धरणी को भूलै नीं। जीवणै पग रो गिट्टो डावड़ै रै गोडै पर सवार राखै। होकै रो कस खींचतो, गोळ-मटोळ सीसां-वाळै चसमै नै ऊपर-नीचै करतो बो खुद नै किणी बादस्या सूं कम को गिणै नीं। आथण इणी चूंतरी पर उणरी मांची हुवै। मांची तो के मंचली ई कैवां तो ठीक लागसी। इसी ई कुरसी अर इसी ई आ मांची। दोनूं आपसरी में धरमभैण-सी लागै। ईं मंचली माथै आडो हुवै तो ई एक टांग तो दूजी ऊपर फेर। घणी ई बारी तो नींदां मांय ई उणरी टांग पर टांग रैवै। देख'र रामजी ताऊ टिपतो ई ठूळो चेप जावै, ''देख्यो के, चौबीसै गो चौधरी?'' (चौबीस गांवां रो चौधरी)
ओ चौबीसै रो चौधरी आपरी आंकड़ में ई को नावड़ै नीं। लखदाद है ईं री मां नै। हर घड़ी राजा रो सो रौब राखै निजरां में। म्हानै घड़गी जकी तो बाड़ में ई बड़गी, अर म्हारै सूं गोरो जकै रै पीळियै रो रोग। नरमाई सूं बात करण री तो सुपनै में ई मत सोचो। पण आज एक अजोगती अर बेजचती-सी बात हुयी, रामरखै रै मूंडै मुळक सांचरी।
आज पै'ली दफै उण रो जीवसोरो हुयो। भुगानियै री तिबारी में गंडकी ब्यायी, भरी दुपारी। ब्यायी जकी तो ठीक, पण जापो खिंडा दियो मांचै पर। मांचो के, ढोलियो हो निवार रो, त्यारी-त्यारी बणोयेड़ो। रामरखै तो दिवाळी-सी धोक ली। मन में फुलझड़ी-सी जगण लागगी। लाडू-सा न्यारा फूटै। हिवड़ै में हाँसी रो हबोळ-सो उठ्यो। गळी टिपतै रावतै नै बुलायो सैन कर'र।
''
आ रै रावता, बैठ, होको पी।''
रावतो थम्यो। मुड़्यो, अर चूंतरी री कूंट पर बैठण लाग्यो बीं सूं पै`ली तो रामरखो भळै बोल पड़्यो, ''लै भई, ईं भुगानियै गै तो मिटग्यो फोड़ो।''
''
क्यां गो?'' रावतै होकै री नड़ी झालतां पूछ्यो।
''
धीणै गो।''
''
बपरा लियो के?''
''
बपरा के लियो, बापरग्यो! अर बो ई ईं लूखासणै में।''
अर भळै दोनूं जणा लाग्या बतळावण। आंख्यां मटकार-मटकार`र बतावै रामरखो। मुधरो-मुधरो मुळकतो सुणै रावतो। इयां भलां ई आपसरी में जचो ना जचो, पण परायो मैल धोवणो हुवै तो सोडो सीरमीर रो।
''
घर में गंडकी ब्यायेड़ी सुभ हुवै।'' पंडतजी बता'ग्या भुगानै नै। ''पौ-बारा पच्चीस है भई भुगाना तेरै तो।''सुन`र भुगानै रै तो पांख लागगी। घर में भरी बखारी रा सुपना देखै। उतरादै खेड़ै में नरमै री फसल पर सांतरो फाळ देखै। काया तिरपत हुवै। ''लै भई, हुग्या ठाठ! बणाओ घूरी। गुड़-तेल रो सीरो करो। आपणै तो आज देवता ई तूठग्या।'' गंडकी री सेवा पर सगळो घर मूंधो हुग्यो।
रामरखै नै भणकारो लाग्यो। सगळो उमाव मट्ठो पड़ग्यो। गोडा-सा ई टूटग्या। मूंडै परली मुळक जावती रैयी। बातड़ी तो बेजां बणगी। उणरै आणंद रा छिण लुटग्या।
घूरी आगै टाबर-टीकरां रो मेळो-सो मंडग्यो। गंडकी रा भाग जागग्या। दोनूं टंक सीरो, टाबर मळेटो मांग ल्यावै जको न्यारो। दिन पांच-सातेक में कूरियां री आंख्यां खुलगी अर दिन दसेक में तो बां रै पांख लागगी। बटा गट्टू-सा रूड़्या फिरै। दो-एक दिन तो बाखळ में अर फेर गळी में ई घूमरी घालण लागग्या। रामरखो देखै तो खायो-पीयो सो` बळ जावै।
एक दिन माटी सूंघता, पूंछ हलावता खतौड़ में जा पूग्या। ''हद होगी भई'', रामरखै रो रंदो थमग्यो। ''थम तेरै धणी गी......!'' रंदो छोड खड़्यो होयो। पग पीट्या। कोई असर नीं हुयो। उठा-उठा`र गळी में फैंक्या। मूंडा धूड़ में भरीजग्या। कोंय-कोंय करता भाज्या अर सीधा घूरी में जा बड़्या।
भुगानै ई देख लियो ओ सीन। जीवदोरो तो घणो ई होयो, पण छोटी-सी बात नै लेय'र राड़ मौल कुण लेवै। लोग बातां बणासी, बटा, कूरियां खातर लड़ पड़्या। दो-एक दिन तो कूरियां ई खतौड़ कानी मूंडो को कर्यो नीं। पण फेर भूलग्या। टाबर माऊ रै थाप नै भूल जावै जियां। टाबर ई तो हा। भळै बो ई रस्तो। रामरखो ललकारै जद एकर तो पाछा भाजै अर लटूरिया करता फेर जा बड़ै।
एक दिन तो हद ई हुगी। देखतां-देखतां ई साम्हीं पड़्यै चरखै पर एक कूरियो फारिग हुग्यो। ''हत्ततेरै गी... गंडक! तेरै धणी गै आग लागै तेरै गै! आ ई जगां लाधी के तनै? बण दुर-दुर कर्यो, इत्तै में तो पार। ''अब सो'रबो करो बैठ्या नरग!''
बो चसमा सावळ करतो चूंतरी पर आयो। साम्हीं आपआळी चूंतरी पर भुगानो हो त्यार।
''
अरै ओ भुगाना! काबू राख तेरा सिकारां नै। इन्नै आ, ओ देख, तरड़-तरड़ गे घर भर दियो म्हारो। .....एक ठोक दी नीं डांग गी तो पाणी को मांगै गा नीं।''
भुगानै सोच्यो, बोल्या नीं अर राड़ बधी नीं। सुणतो रैयो। पण रामरखो किसो थम जावै। दखी, फेर कूं, बांध ले तेरा नै, निस तो कुचीलो पड़्यो है मेर कनै।''
''
बांध लेस्यां ठाडा, क्यूं गाम भेळो करै।'' भुगानै सूं होळै-सी`क बोलीजग्यो। अब तेरा बधै' मेरा।
''
अच्छ्या, उलटो चोर कोटवाळ नै डंडै? घुर्रो न्यारो करै!''
भुगानो चुप। पण रामरखो तो गेड़ चढग्यो।
''
देखी पड़ी है इसी दातारी! काल-परसूं तांई भूख मरतो। छानो है के मेरै सूं। ....पाळू सिकारियां गो!''
रोळो सुण रावतो आ`ग्यो। बूंकियो झाल'र ले'ग्यो खतौड़ में।
''
बावळो है के रामरखा!''
''
अच्छ्या म्हैं ई बावळो हूं! ओ देख, देख तो सरी तूं एकर।'' बण चरखै कानी आंगळी करी।
अब लाग्यो रावतै नै हुंकारा भरावण। ''काल-परसूं तांई ईं गी सासू रैवती अठै, भूख मरती जद रोटी जीम गे जांवती म्हारलै घरे। आज ओ टीकली-कमेड़ी बण्यो फिरै।''
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हम्बै-हम्बै, आ तो कीं सूं छानी है।''
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छानी? पण कैवतां जोर आवै, अठै तो भई, खायां बिनां रैय जावां, पण कैयां बिनां को रैवां नीं।''
''
ठीक ई बात है, ठीक ई बात है।''
रावतै रा हुंकारां सूं रामरखै रो कीं आफरो उतर्यो।
पण आगलै ई दिन इसी हुयी कै रामरखै रै रूं-रूं में लाय लागगी।
रामरखै रा दांत गमग्या। रात रोटी जीम`र छोड्या हा पाणी घाल`र बाटकी में। एक टेम ई जीमै। सो आथण तांई काम को पड़्यो नीं। सम्हाळ्या तो दांत लाध्या न को बाटकी। सक सीधो कूरियां पर।
''
ओ तो हंच हुग्यो। फाई हुगी ज्यान नै। आछो सेको होयो रे, माला मांड लिया आं तो। ओs होs हो.... अब के करां भई!''
तळमाटी करली। पूरो घर छाण लियो। पण क्यांरा लाधै। बो फेर चूंतरी पर आयो। ''देख भुगाना, अब पार को पड़ै नीं यार! घरां कीं चीज ई को छोडै नीं।'' उणरै जीवणै हाथ री अंगूठै सा`रली आंगळी ले-धे हवा में हालै ही।
भुगानै पै`ली तो आपरै डील में ही जित्ती नरमाई अंवेर'र भेळी करी अर फेर बोल्यो घणी लुळताई सूं, ''भाईजी, आज तो ऐ कूरिया थारलै घर कानी गया ई कोनी। म्हैं दिनगे गो अठै ई बैठ्यो हूं।'' भळै पूछ्यो, ''के बात हो'गी?''
''
मेरला दांत चक लेग्या यार, म्हनै तो हांडी-हेट कर दियो।'' नरमाई पर नरमाई मतै ई बापरगी। छाटी गेरी पर तो जकात ई को लागै नीं।
बो पाछो आपरी खतौड़ में आयग्यो। होको पीवतो सोचै, आं गंडकां सूं गैल छूटै तो कियां छूटै? साम्हीं पड़्यो बरसोलो दीखै। दे काढ नीं बरसोलै री, एक में ई रांद कट जासी। भळै बो सोचै, कुचीलो दे'द्यां। भांत-भांत री बातां बीं रै मन मांय घिरोळा देवै। रील-सी चालै। अर फेर बैठ्यो-बैठ्यो ई डूब जावै सपनां में। .......कुचीलो खायेड़ा कूरिया तड़फै है कोजी तरियां। भुगानो अर बास रा सगळा टाबर पाणी रा डब्बा भर-भर' गेरै है बां रै सिर ऊपर। अर देखतां ई देखतां बै तो मरग्या। अब मरेड़ा कूरियां बा' कर बैठ्या टाबर रोवै कोजी तरियां। भुगानै रै ई पळपळिया चाल पड़्या। अर....अर बा, बा बां कूरियां री मा, बापड़ी कद ई ईं नै अर कद ई बीं नै चाटै, सैतरी-बैतरी। दरसाव देख्यां हियो फाटै, भीतर हालै।
रामरखै रो हाथ होकै री नड़ी पर थिर हुग्यो। चसमा रा काच आला हुग्या।
इत्तै में ई बीं री पड़पोती दांत ल्या'र दादै री झोळियां में गेर्या।
''
हैंs! ऐ कठै लाद्या?''
''
का'ल है नीं, माऊ भांडा मांजै ही नीं, जद बाटकी में पड़्या हा। फेर है नीं, माऊ हांडी में मै'ल गे भूलगी।''

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