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Saturday, February 21, 2009

मायङ भासा दिवस


मां, मांयड़भोम अर मायड़भासा

रो दरजो सुरग सूं ई ऊंचो



21 फरवरी, 1952 रै दिन बांगला भासा रो मान बचावण सारू ढाका में नौ जणां आपरो बलिदान दियो। इतिहास में प्रेम सारू, देस सारू बलिदान हुवण री बातां तो घणी सुणी पण भासा-प्रेम सारू आ निराळी घटना ही। इण घटना री याद में हर बरस 21 फरवरी नै आखै संसार रा मायड़भासा-हेताळु, खासतौर सूं बांगला-भासी इण दिन नै भासा-शहीद-दिवस रै रूप में मनावै। यूनेस्को इण दिन नै अंतरराष्ट्रीय मायड़भासा दिवस घोषित कर राख्यो है। इण मौकै आपां राजस्थानी रा लूंठा लिखारा पद्मश्री विजयदांन देथा रा सब्द


-पद्मश्री विजयदांन देथा



भासा कोई थोथो नारो नईं है। सरीर रो हिस्सौ व्है मायड़भासा। भासा खतम व्है तो लाखां सालां री सांस्क्रतिक परम्परा खतम व्है। आपरै सांस्कृतिक वातावरण मांय पनप'र जको सबद निकळै उण री कोई होड़ नीं व्है। भासा शास्त्री भासा नईं बणावै। भासा सिरजै है- औरत वर्ग, खेत-खळां अर दूजी ठोड़ पचण वाळा, पसीनो बहावण वाळा मजूर-किरसाण।अठारवी सताब्दी में रूस में जका अभिजातीय वर्ग हा, वै फ्रेच बोलता और बाकी गरीब तबको रूसी। पण कोई भी रूस रो, जर्मनी रो, जापान रो मातृभाषा बिना आगै नीं बध सक्यो। किणी देस रो लिखारो व्हो, आपरी मायड़भासा बिना कोई रवीन्द्र बाबू, बंकिम या झंवेर चंद मेघाणी नीं बण सकै। कोई भी क्लासिकल साहित्य मायड़भासा टाळ नीं रचीजै। अठै रो आकास, अठै री जमीन, अठै रो पांणी सगळो मातभासा रै पांण ई अभिव्यक्त व्है। नौकरी लागण वास्तै तो भलां ई दस भासावां सीख लो, पण रचनात्मक साहित्य री सिरजणा तो मायड़भासा में व्है ई सकै। छव बरस री उमर में टाबर कनै आपरी मायड़भासा री जित्ती सबदावळी व्है जावै, वा दूजी भासा में बीए करै जद तक नीं व्है सकै। आपणा कित्ता-कित्ता सबद है, लोकगीत है, मुहावरा है, औखांणा है, बातचीत रा कित्ता लफ्ज है। ब्रजमोहन जावलिया आपरी लोकजीवन सबदावली में जिका सबदां रो संकलन करियो है, वो घणो अनोखो काम है। आप बांचो। एक-एक प्रक्रिया रा आपरा न्यारा-न्यारा सबद है।लोकगीत आपणै राजस्थान में करीब-करीब सब समान है। बोली में थोड़ो-घणो फरक है। डिंगळ, जो राजस्थानी रो ई प्राचीन रूप है, एक हजार साल तक अठै काव्य रो माध्यम रैयी। म्हैं जद पढणो-लिखणो सरू करियो जद सूं लेयनै एमए करी जित्तै राजस्थानी री किताबां कोनी मिळती। पण म्हारै अवचेतन में राजस्थानी रा दाणा हा। वां सूं लिखणो पोळायो। 1958 में संकळप लीन्यो कै राजस्थानी टाळ किणी दूजी भासा में कागद ई नीं लिखूंला।
राजनीतिक इच्छाशक्ति बिना कोई भासा नै मान्यता नीं मिळ्या करै। आपणै देखतां-देखतां बोडो, संथाली, डोगरी, नेपाली, कोंकणी, मैथिली अर पतो नीं कित्ती भासावां नै मान्यता मिळगी। वां रै नेतावां में दम हो। आपणा नेता वोट री वगत तो भासण मायड़भासा में करै, पण मायड़भासा रै मान-सनमान री बात नीं जाणै। वै नीं जाणै कै मायड़भासा सूं वंचित रैवणो, कित्ती बड़ी सम्पदा सूं वंचित रैवणो है।आज भण्या-गुण्यां मोट्यारां रो फरज बणै कै वै जनता नै इण मुद्दे सारू जागरूक करै। आजादी वास्तै सगळो देस नीं लड़्यो। गिण्या-चुण्या मिनख व्है जो आंदोलन में आगीवाण व्हिया करै। आज हरभांत रो भेद मेट'र मायड़भासा रै सनमान सारू एकठ व्हैण री जरूरत है, क्यूंकै आपणी संस्क्रति में मां, मांयड़भोम अर मायड़भासा रो दरजो सुरग सूं ई ऊंचो है।

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रुत आई रे पपईया तेरै बोलण की

-रामदास बरवाळी
फागण रै रंग में अंग-अंग रमै। मैहरी करै मस्ती रो सिणगार। घाघरियो-कु़डतियो, ओढणियो। मूंछां लकोवण खातर काढै घूंघटो। बांधै पेटी। पगां मांय बंधावै मोटा-मोटा घूघरिया। दिखावै घूम-घूमाळो नाच। उठै डंफां रा धमीड़ा। गावै धमाळ।




रुत आई रे पपईया तेरै बोलण की।
रुत आई रे......।
कठै रवै रे तेरा मोर-पपईया रे,
कठै रवै रे प्यारी कोयलड़ी ?
रुत आई रे......।
बागां में रवै रे मेरा मोर पपईया,
म्हैलां में रवै रे प्यारी कोयलड़ी।



कोई मुरळी बजावै। कोई जोड़ी-खड़ताळ, कोई झुझणिया बजावै। टेरिया नाचै दे दे गे़डा। सुणीजै धमाळां री मीठोड़ी लवा। दूर-दूर तांईं मो'वै काळै नै बीण दांईं। जो'ड़ा, कुवा, बावड़ी, पणघट मांय दीसै-मुळकता मूंडा। धमाळां री रणुकार। 'धीमी चालो ए पणिहारी लहंगो गरद भरै।' बारियो किल्ली काढतो गावै। पणघट में पणिहारी घड़लो डबोंवती गावै। बाणियो धड़ी भरतो ई गुणगुणावै- 'लहंगो गरद भरै।' कड़तू पर बोरी उंचायां पलदार ई गावै- 'धीमी चालो ए पणिहारी।' ऊंट चढ्यो हाळी गावै। भेडिया चरांवतो पाळी गावै। फूल तोड़तो माळी गावै। दूध काढती घरहाळी गावै। आ मीठोड़ी लवा, तो भूखी भैंस पावसज्यै। गधो ई डंफां रै साथै आपरै सुर में गावै- 'सूवो पाळ्यो ए बंगालण छोरी जुलम करयो, सूवो पाळ्यो ए।' राख में लिटती बीं री जोड़ायत भी लारै क्यूं रैवै- 'देवर म्हारो ए ओ हरियै रुमाल वाळो ए.....देवर म्हारो ए।' टाबर मनावै फागण री मौज। छोरियां बड़कूलियां री माळा बणावै। गांव रै गौरवैं जद होळी मंडै, मैहरी होळी मंगाळण जावै। धमाळ गांवता-नाचता। छोरियां बड़कूलियां री माळा होळी नै पै'रावै। मोट्यार आपसरी में होळी खेलै। होळी री झळ सूं जमानै रा सुगन मनावै। झळ री लकड़ी सै लोग आप-आपरै घरां लावै। हाँसता-मुळकता, नाचता-गावता, उठै मस्ती रा रमझोळ। बाजै चंगां रा धमीड़ा। मैहरी गावै- 'राजा बलि कै दरबार मची रे होळी, राजा बलि कै।' आखी रात घालै धींगड़।झांझरकै ई होळी रो नारेळ बधारै। चिटकी बांटै। मुळकतै मूंडै गावै- 'लेवण आयो ए सहेली म्हारो देवर चिटकी... लेवण आयो ए।' दिनूगै ई गैर खेलण सारू रामरूमी करता घर-घर जावै। बोलै मीठोड़ा बोल। रांग-रंगीलो मस्ती भरियो होळी रो तिंवार। लागै जोबण री फटकार। रंग बरसावै मूसळधार। भाभी-देवरियै रो प्यार। हरयै-लाल-गुलाबी रंग री बिरखा हुवै। देवरियां री कड़्यां में बाजै कोरड़ा। उछळै खोपरां री चिटकी। खेलै देवर फाग-पिचकारी, भाभिया सागै। करद्यै रंग-रंगीली। छैल-छबीली। आखै दिन बाजै बिड़दंग। बरसै रंग। उडै गुलाल। आगै मैहरी गांवता-नाचता चालै। लारै टाबरां रो टोळ। गळी-गळी गैर खेलता। सगळां सूं मिलता। धमाळ गांवता। रंग बरसांवता। पूगै उगाड़। दिखावै घूम-घूमाळो नाच। सुणावै मीठोड़ी लवा- 'सुख-बसियो रे गांव, नगर-खे़डो सुख-बसियो।'

Tuesday, February 17, 2009

आपणा इलाका : आपणा नांव

-ओम पुरोहित'कागद'

राजस्थान जूनो प्रदेश। जूनी मानतावां। जूनो इतिहास। जूनी भाषा। जूनी परापर। परापर एड़ी कै आज तक इकलग चालै। खावणै-पीवणै, उठणै-बैठणै अनै बोवार री आपरी रीत। रीत में ठरको। ठरकै में इतिहास री ओळ। ग्यान-विग्यान अर भूगोल री ओळ। बात-बोवार अर नांव में राजस्थानी री सौरम। इण सौरम रो जग हिमायती। आजादी सूं पैली राजस्थान में घणा ठिकाणा। घणा ई राज। राजपूतां रा राज। इणी पाण राजपूताना। राजा राज करता पण धरती प्रजा री। प्रजा राखती नांव धरती रा। नांवकरण में ध्यान धरती रै गुण रो। राजवंश, फसल, माटी, पाणी, फळ, पसु-पखेरू धरती रा धणी। आं री ओळ में थरपीजता इलाकै रा नांव।बीकानेर रा संस्थापक राव बीकाजी रै नांव माथै बीकाणो। बीकाणै में बीकानेर, गंगानगर, हनुमानगढ़, चूरू, भटिंडा, अबोहर, सिरसा अर हिसार। राव शेखाजी रै नांव माथै शेखावाटी। शेखावाटी में चूरू, सीकर अर झुंझुणू। मारवाड़ में जोधपुर, पाली जैसलमेर, बीकानेर, बाड़मेर। मेवाड़ में उदयपुर, चितोड़ , भीलवाड़ा अर अजमेर। बागड़ में बांसवाड़ा अर डूंगरपुर। ढूंढाड़ में जयपुर, दौसा, टोंक, कीं सवाईमाधोपुर। हाड़ौती में कोटा, बूंदी, बांरा, झालावाड़, कीं सवाईमाधोपुर। मेवात में अलवर, भरतपुर। जैसलमेर में माड़धरा, हनुमानगढ़ नै भटनेर, करोली-धोलपुर नै डांग, अलवर नै मतस्य, जयपुर नै आमेर, अजमेर नै अजयमेरू, उदयपुर नै झीलां री नगरी, जैसलमेर नै स्वर्णनगर, जोधपुर नै जोधाणो अर सूर्यनगरी, भीलवाड़ा नै भीलनगरी, बीकानेर नै जांगळ अर बागड़ भी कैईजै। राजस्थान रै हर खेतर रा न्यारा-निरवाळा नांव। कीं नांव बिणज-बोपार माथै। कीं नांव जमीन री खासियतां रै पाण। बीकाणै में भंडाण, थळी, मगरो अर नाळी जे़डा नांव सुणीजै। ऐ हाल तो बूढै-बडेरां री जुबान माथै है। बतळ में उथळीजै। पण धीरै-धीरै बिसरीज रैया है। आओ आपां जाणां आं नांवां री मैमा।


भंडाण

भंडाण बीकानेर जिलै री लूणकरणसर, बीकानेर अर कीं कोलायत तहसील रै उण गांवां नै कैवै जकां रै छेकड़ में 'ऐरा' लागै। जियां- हंसेरा, धीरेरा, दुलमेरा, खींयेरा, वाडेरा।भंडाण रा मतीरा नांमी होवै। मीठा। अठै री आल जबर मीठी होवै। आल लाम्बै मतीरै नै कैवै। भंडाण री गायां-भैंस्यां, भेड-बकरयां अर ऊंट नांमी। भंडाण रो घी, मावो अर मोठ नांमी। मतीरो भंडाण रो सै सूं सिरै। अठै रै मतीरै सारू कैबा है-
खुपरी जाणै खोपरा, बीज जाणै हीरा।बीकाणा थारै देस में, बड़ी चीज मतीरा।।

थळी

चूरू जिलै रै रतनगढ़ अर सुजानगढ़ रै खेतर नै थळी कैवै। इण खेतर रा लोग थळिया। थळी री बाजरी, मोठ, काकड़िया, मतीरा नांमी हुवै। थळी री बाजरी न्हानी अर मीठी होवै। थळी रा वासी मोटो अनाज खावै। काम में चीढा अनै जुझारू अर तगड़ा जिमारा होवै। थळी सारू कैबा है-
खाणै में दळिया, मिनखां में थळिया।


मगरो

बीकानेर जिलै री कोलायत तहसील अर इणरै लागता जैसलमेर रा कीं गांवां नै मगरो कैवै। अठै री जमीन कांकरा रळी। मगर दाईं समतळ। पधर। इण कारण नांव धरीज्यो मगरो। मगरै रा ऊंट, गा-भेड अर बकरी नांमी। कोलायत धाम भी मगरै में पड़ै।

नाळी


हनुमानगढ, सूरतगढ़, पीळीबंगा, अनूपगढ़, विजयनगर अर हरियाणा रै सिरसै जिलै रै गांवां नै नाळी कैवै। अठै बगण आळी वैदिक नदी सुरसती जकी नै अजकाळै घग्घर भी कैवै। इण नदी खेतर नै नाळी कैईजै। इण इलाकै रो नांव नाळी क्यूं थरपीज्यो। इण सूं जुड़ियोड़ी एक रोचक बात है। आओ बांचां-जद घग्घर में पाणी आंवतो। बीकानेर रा राजा नदी पूजण हनुमानगढ़ आंवता। एकर राजाजी हनुमानगढ़ आयोड़ा हा। लारै सूं एक जणो अरदास लेय'र महलां पूग्यो। राजाजी नीं मिल्या। पूछ्यो तो लोगां बतायो, नदी पूजण गया है। बण पूछ्यो, नदी के होवै? एक कारिंदै जमीन माथै माटी में घोचै सूं लीकटी बणाई। लोटै सूं उण में पाणी घाल्यो। बतायो, नदी इयां होवै। बण कैयो, ऐ डोफा! आ क्यांरी नदी ? आ तो नाळी है, नाळी। बस उण दिन रै बाद इण इलाकै रो नांव नाळी पड़ग्यो। नाळी रा चावळ, कणक अर चीणा जग में नांमी। नाळी री जमीन घणी उपजाऊ होवै।

औखांणो

बूढळी रै कह्यां खीर कुण रांधै?

बुढ़िया के कहने से खीर कौन पकाए?साधारण या आम आदमी की बजाय श्रीमंतों के आदेश की ही सर्वत्र अनुपालना होती है।